Good World

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Thursday, October 25, 2012

"संगति"

एक विद्वान ने कहा है, “जल जैसी जमीन पर बहता है, उसका गुण वैसा ही बदल जाता है। मनुष्य का स्वभाव भी अच्छे-बुरे विचारों के लोगों की संगति के अनुसार बदल जाता है। इसलिए चतुर मनुष्य बुरे लोगों का साथ करने से डरते हैं, लेकिन मूर्ख व्यक्ति बुरे आदमियों के साथ घुल-मिल जाते हैं और उनके संपर्क से अपने आपको भी दुष्ट बना लेते हैं। मनुष्य की बुद्धि तो मस्तिष्क में रहती है, किंतु कीर्ति उस स्थान पर निर्भर रहती है जहां वह उठता-बैठता है और जिन लोगों या विचारों की सोहबत उसे पसंद है। आत्मा की पवित्रता मनुष्य के कार्यों पर निर्भर हैऔर उसके कार्य संगति पर निर्भर हैं। बुरे लोगों के साथ रहने वाला अच्छे काम करे यह बहुत कठिन है। धर्म से स्वर्ग की प्राप्ति होती है, किंतुधर्माचरण करने की बुद्धि सत्संग या सदुपदेशों से ही प्राप्त होती है। स्मरण रखिए कुसंग से बढ़कर कोई हानिकर वस्तु नहीं है तथा संगति से बढ़कर कोई लाभ नहीं है।”

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य,  

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