आत्मकल्याण
के मार्ग पर चलने वाले को आत्मनिरीक्षण की प्रवृत्ति अत्यावश्यक है। इसका
आशय यह है कि हमको विवेक के प्रकाश में अपने दोषों पर विचार करना और उनको
दूर करने का प्रयत्न निरंतर करतेरहना चाहिए। इस प्रकार के आत्मनिरीक्षण
बिना निर्दोषता की प्राप्ति हो सकना बहुत कठिन है।
- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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