अब
तक संयम का एकांगी अर्थ ही समझा जाता रहा है - संयम अर्थात् शक्तियों के
प्रवाह को रोकना। यदि शक्तियों के प्रवाह को रोका जाता रहे, पर उनका कोई
उपयोग न किया जाए तो लाभ के स्थान पर हानी ही है।
नदियों
का पानी बाँध बनाकर रोका जाये, न उससे सिंचाई का काम लिया जाये और न ही
बिजली पैदा की जाए तो एकत्रित होता जा रहा पानी विनाश ही प्रस्तुत करेगा।
संयम की अब तक जो एकांगी व्याख्या की जाती रही है, उसी कारण यह अव्यावहारिक
सिद्ध होता जा रहा है, क्योंकि शक्तियों के प्रवाह को दिशा तो मिलनी ही
चाहिए, न मिलेगी तो वह विपरीत परिणाम उपस्थित करेंगी। संयम का अर्थ
शक्तियों के प्रवाह को निरर्थक और हानिकारक दिशा से रोक कर सार्थक और
कल्याणकारी दिशा में लगाना है। संयम के इसी स्वरूप को जीवन में धर्म
कर्तव्य बताया गया है।
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
जीवन देवता की साधना-आराधना (२) - ४.३
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