अहंकार के कारण भी अपनी मानसिक
शक्तियाँ बर्बाद होती रहती हैं। अपने बारे में औरों की राय जानने की इच्छा,
चर्चित होने की आकांक्षा, दूसरों से प्रशंसा सुनने और करवाने की अपेक्षा
आदि कितने ही रूपों में अहंता व्यक्ति के मन मस्तिष्क में उठती-उमगती रहती
है। इस तरह की इच्छा और अपेक्षा के मूल में अहंता ही मूल कारण है।
दूसरों
से प्रशंसा सुनने या उनकी राय जानने का एक ही उद्देश्य है अपने को
महत्वपूर्ण अनुभव करना। अपने को महत्वपूर्ण अनुभव करने या व्यक्त करने के
लिए मनुष्य का मस्तिष्क ऐसी उधेड़बुन में उलझ जाता है कि फिर वह अपनी सारी
विचार-शक्ति को उसी ताने-बाने में उलझा देता है। महत्वकांक्षा कोई बुरी बात
नहीं है पर जब वह अहंकार का पोषण करने के लिए ही की जाती हो तो मस्तिष्क
फिर उसी दिशा में सोचने के लिए व्यस्त हो जाता है। उस दशा में रचनात्मक
चिंतन की दिशा ही नहीं सूझती।
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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