Good World

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Friday, November 16, 2012

"राग का त्याग और द्वेष का प्रेम में परिवर्तन "

 अपने प्रति होने वाले अन्याय को सहन करते हुए यदि अन्यायकर्त्ता को क्षमा कर दिया जाय तो द्वेष, प्रेम में बदल जाता है। अपने द्वारा होने वाले अन्याय से स्वयं पीड़ित होकर जब उससे, जिसके प्रति अन्याय हो गया है, क्षमा मांग ली जाय और इस प्रकार उससे क्षमा मांगते हुए अपने प्रति न्याय कर स्वयं दंड स्वीकार कर लिया जाय तो राग, त्याग में बदल जाता है।

     जब राग और द्वेष त्याग और प्रेम में बदल जाते हैं, तब मुक्ति की प्राप्ति स्वतः ही हो जाती है अथवा यों कहें कि अभिन्नता और असंगता स्वतः आ जाती है। यही वास्तविक आनंद है।

-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

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