अभय
एक दैवी संपदा है। भय तो अविद्या जन्य है। शरीर के साथ ताम्यता रहने से ही
मनुष्य भयभीत होता है। ज्यों-ज्यों मनुष्य में आतंरिक शांति, संतोष तथा
वैराग्य की अभिवृद्धि होती जाती हैं त्यों-त्यों उसमें भय का तिरोधान होता
जाता है। अभय की पूर्णावस्था जीवन्मुक्तों में ही पाई जाती है।
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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