Good World

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Tuesday, November 27, 2012

"सेवाधर्म की बाधाएँ और भटकाव"

बहुत से लोगों के मन में उमंगें उठती हैं पर वे यह सोचकर चुप रह जाते हैं कि अभी हम उसके योग्य नहीं। जब हम पूर्णतः योग्य और सक्षम हो जायेंगे तब सेवा करेंगे। स्मरण रखा जाना चाहिए कि आज तक संसार में पूर्णतः योग्य न हुआ है और न होगा, क्योंकि जो पूर्ण होता है वह भवबंधनों से ही मुक्त हो जाता है। उस पूर्ण पुरुष को संसार में आने की आवश्यकता ही कहाँ रह जाती है।

संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं उनके व्यक्तित्व में कहीं न कहीं, कोई न कोई त्रुटी अवश्य रही है। उन त्रुटियों के सुधार का प्रयत्न करते हुए भी वे सेवा के पथ पर निरंतर अग्रसर होते रहे हैं।

जिस प्रकार प्राथमिक कक्षाओं को पढ़ाने वाला अध्यापक अनिवार्य रूप से उच्च शिक्षित कहाँ होता है। छोटे पहलवान अपने से छोटे पहलवान को पहलवानी का अभ्यास कराते हैं। कहने का अर्थ यह है कि कम बुराई वाला व्यक्ति अधिक बुराईयों वाले व्यक्ति को शिक्षा दे सकता है।


-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

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