Good World

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Tuesday, November 27, 2012

"जिसका काम उसी को साझें"

किस समय भोजन करना चाहिए, किस समय सोना चाहिए, किस समय उठना चाहिए, किस समय नहाना चाहिए, किस उम्र में विवाह करना चाहिए, इन सब प्रश्नों का धर्म से कोई लेना देना नहीं है। यह सब स्वास्थ्य विज्ञान का विषय है। इनका उत्तर किसी स्वास्थ्य विज्ञान के वेत्ता से ही पाया जा सकता है । इसी प्रकार किस प्रकार दाम्पत्य जीवन व्यतीत करना चाहिए ? इसका उत्तर समाजशास्त्र के अर्न्तगत होगा  ।

इन सब बातों में अध्यात्म शास्त्र बहुत उदार है और वह अकारण अधिक प्रतिबन्ध एवं संकीर्णता में मनुष्य जाति को फँसाने की इच्छा नहीं रखता । इसलिए अब खान-पान, शौच-स्नान आदि विषय स्वास्थ्य विज्ञान की आधारशिला पर स्थिर होना चाहिए़।

एक समय था जब कानूनों की सीमा छोटी थी और धर्मशास्त्र के अन्तर्गत ही स्वास्थ्य, समाज, राजनीति, गृहस्थ, अर्थशास्त्र, आदि सब बातें आ जाती थीं । आज यह व्यवस्था बदल गई है ।

धर्म को हम अध्यात्म शास्त्र या योग शास्त्र कहते हैं, जो कि अपरिवर्त्तनशील है । अन्य नियम-उपनियम देशकाल पर निर्भर है, इसलिए उन्हें भौतिक भूमिका में लाकर स्वतंत्र शास्त्र बना दिया गया है, यद्यपि उन पर अंकुश धर्म का ही है ।

-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

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