Good World

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Wednesday, November 21, 2012

"स्वोत्साहन (स्व उत्साहवर्धन )"

 जैसे-जैसे किसी विषय का ज्ञान संपादन करने में सफलता प्राप्त करते चलें, वैसे-वैसे अपनी पूर्व स्थिति से तुलना करके प्रसन्न होते जाइए । जितना आप सीख चुके हैं, उनका मुकाबला उनसे कीजिए जिनके पास वह वस्तु नहीं है, तब आपको अपनी महानता प्रतीत होगी । बड़ी योग्यता वालों से अपना मुकाबला न कीजिये, वरन् उनसे स्पर्द्धा कीजिए कि आप में भी वैसी योग्यताएँ हो जावें । 

 मन में निराशा के विचार मत आने दीजिए, अपने ऊपर अविश्वास मत कीजिए । प्रभु का अमर पुत्र मनुष्य किसी प्रकार की योग्यता से रहित नहीं है । साधन मिलने पर उसके सब बीज उगकर महान् वृक्ष बन सकते हैं । माता जिस प्रकार बालक को उत्साहित कर देती है, उसी प्रकार अपनी आत्मा के द्वारा अपने मन को उत्साहित करना चाहिए, उसकी पीठ ठोकते हुए प्रशंसा करनी चाहिए और बढ़ावा देना चाहिए ।
 
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

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