Good World

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Friday, August 2, 2013

"आत्म-संतोष की उपलब्धि"

आत्म-संतोष मानव-जीवन की महानतम उपलब्धि है। इसे प्राप्त करने के लिए उच्चस्तरीय चरित्र की अनिवार्य आवश्यकता पड़ती है। कुटिलतापूर्वक अनीति अपनाकर कोई व्यक्ति तात्कालिक सफलता भले ही प्राप्त कर ले पर आत्मग्लानि और आत्म प्रताड़ना की आग में सदा ही झुलसते रहना पड़ेगा। आत्मग्लानि-तिरस्कार जैसे प्रेत पिशाच उनके पीछे लगे ही रहते हैं, जो चरित्र की दृष्टि से दुर्बल होते हैं, अविश्वास और असहयोग का दंड ऐसे लोगों को हर घड़ी भुगतना पड़ता है। इस प्रताड़ना को सहन करने वाले कभी सिर ऊँचा उठाकर नहीं चल सकते और सदा अपने को एकाकी अनुभव करते हैं। इतनी हानि उठाकर किसी ने कुछ वैभव अर्जित भी कर लिया तो समझना चाहिए उसने गँवाया बहुत और कमाया कम। उच्च चरित्र को अपनाए रहने की महत्ता को जो समझते हैं, वे आत्म संतोष, लोक सम्मान के साथ-साथ दैवी अनुग्रह भी प्राप्त करते हैं और महामानवों को मिलने वाले सम्मान से लाभान्वित होते हैं।


-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

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