Good World

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Friday, August 2, 2013

धनवानों का पैसा सद्प्रयोजन में लगे

यों, वर्तमान धनवानों ने जिस ढंग से कमाया है और जिस मनोवृत्ति से संग्रह किया है, उसे देखते हुए यही सोचा जा सकता है कि वे वह पैसा (1) बेटे, पोतों को विलासी हरामखोर बनाने के लिए छोड़ेंगे। (2) चोरों, डॉक्टरों, शराब घरों एवं वेश्याओं के यहाँ फेंकेंगे। (3) राजनीतिक दाँव-पेचों में खर्च करेंगे। (4) विवाह शादियों में होली फूँकेंगे। (5) अमीरी का ठाट-बाट और शान-शौकत के ढोंगे खड़ा करेंगे। (6) मरने के बाद मुकदमेबाजी और सरकारी टैक्सों में उसे बह जाने देंगे। (7) सस्ती स्वर्ग की टिकट खरीदने के लिए छुट-पुट कर्म-कांडों के बहाने धर्मवंचकों से जेब कटाएँगे। (8) कोई तुरंत नामवरी का या प्रतिष्ठा का लालच दिखा दे तो उसमें थोड़ा बहुत लगा देंगे। धर्मशाला सदावर्त का विज्ञापन बोर्ड भी उन्हें रुचिकर लग सकता है। (9) कोई ठग उन्हें लंबे-चौड़े सब्जबाग दिखाकर ठग ले जा सकता है। ऐसे ही किसी औंधे-सीधे मार्ग में उनकी कमाई जा सकती है, पर मानवीय उत्कर्ष के सच्चे आधार-लोकमानस के परिवर्तन में शायद ही इस वर्ग में से किसी की रुचि पैदा की जा सके। दीखती निराशा ही है, पर कोशिश करनी चाहिए कि कोई विवेकशील धनी प्रतिभा दूरदर्शिता का परिचय दे और मनुष्य को भावनात्मक परतंत्रता के कारागार से छुड़ाने में अपनी कमाई का कुछ अंश लगा सके। धनियों को समझना चाहिए - भावनात्मक नव-निर्माण के पुण्य प्रयोजन में सहयोग देने से बढ़कर और कोई दान-पुण्य हो नहीं सकता। समझ और सदाशयता जीवित हो, तो वे वस्तुस्थिति पर विचार करें और उदारता की एक बूँद उस प्रयोजन के लिए भी खर्च कर दें, जिस पर मानव जाति एवं समस्त संसार के भाग्य-भविष्य बनने बिगाड़ने की संभावना बहुत कुछ निर्भर है।

-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

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