महात्मा गांधी ने भी औद्योगीकरण और यंत्रीकरण को उतना ही आवश्यक माना था जितने से कि मनुष्य का जीवन और सरल बने। यंत्रीकरण बुरा भी नहीं है, बुरा उस स्थिति में है जब समृद्धि ही जीवन दर्शन बन जाए। साधन-सुविधाएँ भले ही बढ़ाई जाएँ पर उनका उपयोग वैभव, विलास, बड़प्पन की धाक जमाने और दूसरों को छोटा सिद्ध करने के लिए नहीं किया जाए। इस तथ्य और सत्य को पूरी तरह स्वीकार और अंगीकार किया जाना चाहिए कि जीवन साधनों के लिए नहीं है बल्कि साधन-सुविधाएँ जीवन के लिए हैं। जीवन सर्वोच्च और सर्वाधिक मूल्यवान है तथा उसकी सार्थकता आत्मिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक विकास एवं ऊपर उठाने में ही है। अन्य किसी भी रूप में जीवन की सार्थकता सिद्ध नहीं होती है। इसलिए आदर्शों और नैतिक मूल्यों को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए ही किसी क्षेत्र विशेष में प्रवेश और प्रगति के प्रयास करने चाहिए।
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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