पराक्रमों में सबसे अधिक महत्त्व का वह है जिसमें अपनी अनगढ़ आदतों को सुधारने का श्रेय पाया जा सके। बाहरी संघर्षों से जूझने और कठिनाइयों को हटाने में दूसरे लोग भी सहायता कर सकते हैं और परिस्थितिवश श्रेय भी मिल सकता है। किंतु अनुपयुक्त आदतों को बदलना मात्र अपने निजी पुरुषार्थ के ऊपर ही रहता है इसलिए उसे प्रबल पराक्रम की संज्ञा दी गई है और उसे ऐसे लोगों को सच्चे अर्थों में शूरवीर कहा गया है।
No comments:
Post a Comment