प्रकृति ने अपने भंडार में वे सभी वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कर रखी हैं जिनकी जीवन निर्वाह के लिए आवश्यकता है। जो वस्तु जितनी अधिक आवश्यक है, वह उतनी ही सरलता से सुलभ है। उदाहरण के लिए, मनुष्य और अन्य जीवधारियों को जीने के लिए साँस लेना सबसे अधिक आवश्यक है। साँस लेने के लिए प्रकृति द्वारा वायु का सबसे बड़ा भंडार उपलब्ध है। इसके बाद संभवतः पानी की आवश्यकता सबसे ज्यादा पड़ती है तो वायु के बाद पानी सर्वाधिक सरलतापूर्वक उपलब्ध है। वायु तथा जल के बाद अन्न सबसे अधिक आवश्यक है। उसे भी मनुष्य परिश्रमपूर्वक आवश्यक ही नहीं पर्याप्त मात्रा में उगा सकता है। उसी प्रकार वह पहनने के लिए वस्त्र, भोजन बनाने के लिए ईंधन आदि भी प्रकृति से ही प्राप्त करता है। औषधियाँ, लोहा, इमारती लकड़ी, मकान के लिए मिट्टी और मिट्टी से बनी ईंटें, पत्थर, धातु, लोहा, तांबा, सोना आदि वस्तुएँ भी धरती माता की कृपा से ही प्राप्त हो जाती हैं। इनमें जो वस्तुएँ जितनी कम मात्रा में आवश्यक होती हैं वे उतनी ही दुर्लभता से मिलती हैं।
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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