विभूतियाँ आंतरिक सद्गुणों को कहते हैं। असली संपदाएँ यही हैं। वे जहाँ भी होंगी व्यक्तित्व में श्रेष्ठता का समावेश करेंगी। सम्मान और सहयोग का क्षेत्र बढ़ाएँगी। मित्रों का क्षेत्र विस्तृत होता चला जाएगा, प्रशंसकों की कमी न रहेगी।
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
No comments:
Post a Comment